भारत
एक ऐसा मुल्क है जिसका इतिहास हमेशा से योद्धाओं से भरा हुआ रहा है, इतिहास के हर पन्ने पर आपको भारत के योद्धाओं का नाम मिलता
रहेगा यहाँ एक तरफ जहां महारणा प्रताप जैसे सुरमा हुए वहीं यहाँ टीपू सुल्तान जैसे
योद्धा भी हुए हालांकि इनके नाम के साथ अब कई विवाद जुड़ गए है, मगर फिर भी भारत के लिए जो उन्होने ने किया उसको भुलाया नहीं जा सकता.
20 नवम्बर 1750 ईस्वी कर्नाटक के देवनाहल्ली में एक ग़ैर
मामूली बच्चे का जन्म हुआ नाम रखा गया उनका सुल्तान फतेह अली खान शहाब जिनको आज हम
टीपू सुल्तान के नाम से जानते है। उनके वालिद का नाम हैदर अली और उनकी वालिदा का
नाम फखरुनिसा था, हैदर अली मैसूर साम्राज्य में एक मामूली से
सैनिक थे, लेकिन अपनी सोच समझ और युद्ध कुशलता की वजह से वो
मैसूर साम्राज्य के तख़्त तक जा बैठे. फ्रांसीसी और अंग्रेज़
दोनों का भारत के अलग अलग क्षेत्रों पर कब्ज़ा था अंग्रेजों को हारने के लिए हैदर
अली ने फ़्रांसीसियों का साथ लिया। और तोप, तलवारों और
बंदूकों से पूरी तरह लैस एक सेना की टुकड़ी के सहारे 1749 मेन हैदर अली ने मैसूर के
साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। वहाँ के राजा नंजराज की जगह ले ली और 1761 मेन हैदर
अली मैसूर के शासक बन गए, उस समय के मशहूर राजा कृष्णराज
वाडियार और मैसूर पर उनका अधिकार हो गया। फिर हैदर अली ने कनारा, बदनौर और दक्षिण के कई क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिला लिया.
टीपू सुल्तान
टीपू सुल्तान योद्धा था और बहुत ही बुद्धिमान भी
था सिर्फ 17 साल की छोटी सी उम्र में ही टीपू सुल्तान ने अपना पहला युद्ध लड़ा था, उसके नाम के साथ कई किस्म की बातें जुड़ी हैं एक पक्ष कहता है
की वो देशद्रोही,बलात्कारी और क्रूर शासक था और दूसरा पक्ष
कहता है की, वो एक नेक आदमी और अच्छा शासक था जिसने
अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और हमेशा देश के पार्टी ईमानदार रहा.
टीप सुल्तान के नाम के साथ जुड़ी बदनामियाँ
अभी कुछ समय से ये माना जाने लगा है की, आज तक जो भी हमने इतिहास पढ़ा और पढ़ाया है वो ग़लत है वो किसी
खास सोच के तहत लिखा गया इतिहास है . और इस पक्ष के मानने वाले ये कहते हैं की, टीपू सुल्तान का भी इतिहास बदल कर हमारे सामने पेश किया गया आरएसएस के एक
बहुत प्रसिद्ध विचारक हैं राकेश सिन्हा जो कहते हैं की, खुद
टीपू सुल्तान ने ये कहा था की “मैंने लाख से ज़्यादा हिंदुओं का धर्मांतरण करवाया
था तलवार के ज़ोर पर और उन्हे मजबूर किया की वो इस्लाम कुबूल कर लें”. टीपू सुल्तान
की जो छबि आज तक हम देखते आए हैं इस पक्ष के हिसाब से वो ऐसा बिलकुल नहीं था, वो हिन्दू और ईसाई महिलाओं के साथ ज़बरदस्ती किया करता था. और अपनी सनाओं
को भी ऐसा करने की उसने पूरी छुट दे रखी थी। साथ ही साथ वो मंदिरों और चर्चों को
भी नुकसान पहुंचता था उसने अपने शासन काल के दौरान कई मंदिरों को और चर्चों को
तोड़ा और उसकी जगह मस्जिदों का निर्माण करवाया. टीपू सुल्तान के शासन काल में उसने
एक कुर्ग अभियान की शुरुवात की जिसके तहत उसने लगभग 1 हज़ार हिंदुओं का एक ही दिन
में धर्मांतरण करवाया और उन्हे मजबूर करके इस्लाम धर्म कुबूल करवाया. इस बात की
तसदीक विलियम लोगान की किताब “ वायसेस ऑफ द ईस्ट” से भी होती है.
टीपू सुल्तान के पक्ष की बातें
एक पक्ष ऐसा भी ही जो कहता है की टीपू सुल्तान न सिर्फ एक
अच्छा और नेक दिल इंसान था बल्कि वो एक बुद्धिमान और अच्छा शासक भी था। उसने अपने
शासन काल में बहुत से सामाजिक काम किए जिनसे जनता को लाभ पहुँच सके, 1782 से लेकर 1799 तक टीपू सुल्तान नें मैसूर का साम्राज्य
संभाला और वो वहाँ के सुल्तान रहे। टीपू सुल्तान को “शेर -ए- मैसूर कहा जाता था, वो बहुत ही बुद्धिमान और कुशल योद्धा था उसको दुनियाँ का पहला मिसाइल मैन
कहा जाता है, उसने अपने शासन काल में दुश्मनों पर हमला करने
के लिए रॉकेट का आविष्कार किया था. जो उसके पहले कभी किसी ने नहीं किया था आज भी
लंडन के एक म्यूज़ियम में टीपू सुल्तान के द्वारा बनाए गए कुछ रॉकेट सुरक्षित रखे
हुए हैं जीन्हे अंग्रेज़ अपने साथ 18वीं सदी में ले गए थे,
इन्ही राकेटों से प्रेरणा लेकर आज के रॉकेट बनाए जाते हैं। भारत के मशहूर
वैज्ञानिक डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम जिन्हे रॉकेट मैन कहा जाता है, उन्होने एक किताब लिखी थी “विंग्स ऑफ फ़ायर “ उस किताब में उन्होने ज़िक्र
किया है की, जब वो NASA गए थे तब
उन्होने वहाँ एक सेंटर में टीपू सुल्तान की रॉकेट की एक पेंटिंग देखि थी जिसे उनके
सैनिकों के साथ दर्शाया गया था. हैदर अली और टीपू सुल्तान ने इन रोकेटों का बहुत
इस्तेमाल किया अपने वक़्त में, ये लंबाई में छोटे होते मगर इनकी
मारक क्षमता बहुत अच्छी और सटीक होती थी, लोहे के पाइपों में तलवारों का इस्तेमाल किया जाता था जिसे वो और भी
खतरनाक हो जाते थे और इस रॉकेट से 3से 4 किलोमीटर तक हमला किया आ सकता था ये इतनी
दूरी तक भी काफी कारगर साबित हुआ करते थे. कई
इतिहासकारों का मानना है की पोल्लीलोर की लड़ाई के दरमायान इन्ही रोकेटों ने
हार को जीत में बदल दिया था.
राम के नाम की अंगूठी
आज भले ही टीपू सुल्तान के नाम पर राजनीति की जा रही हो और
ये कहा जाता है की, टीपू सुल्तान हिंदुओं का दुश्मन था वो उनको
नापसंद करता था और जब भी मौका मिलता वो हिंदुओं को ज़बरदस्ती इस्लाम कुबूल करने पर
मजबूर किया करता था. मगर एक बात ऐसी है जो इस बात को ग़लत साबित करती है और वो बात
ये है की टीपू सुल्तान हमेशा अपनी उंगली में जो अंगूठी पहनता था, उसमें श्री राम का नाम गढ़ा हुआ था वो बहुत ही खूबसूरत सी अंगूठी थी। जिसे
टीपू सुल्तान हमेशा पहने रहता था, श्रीरंगपट्टनम में
अंग्रेजों और टीपू सुल्तान के बीच हुई घमासान लड़ाई में टीपू सुल्तान शहीद हो गया
उसके बाद अंग्रेजों ने उसकी जान से अज़ीज़ अंगूठी को उसकी उंगली काट के निकाला और
अपने साथ ले गए.
टीपू सुल्तान की तलवार
टीपू सुल्तान की तलवार बहुत मशहूर थी इसके नाम से दूरदर्शन
पर धारावाहिक भी आया करता था 90 के दशक में .उस धारावाहिक का नाम था “The Sword of Tipu Sultaan”. टीपू सुल्तान की तलवार के बारे में
कहा जाता है की, उसका वज़न 7 किलो और 400 ग्राम का था. उस
तलवार पर कई महंगे पत्थरों से बाघ की आकृति बनी हुई थी, टीपू
सुल्तान से जुड़ी हर चीज़ पर मुख्य रूप से बाघ की आकृति बनी हुई होती थी. जब टीपू
सुल्तान शहीद हुए तो उनकी तलवार और बाकी सारा सामान अंग्रेज़ अधिकारी अपने साथ लंदन
ले गए। उनके तलवार की नीलामी लंदन के बॉनहैम्स नीलाम घर में हुई उनके तलवार की
नीलामी 21 करोड़ रुपयों में हुई, जिसे भारत के शराब व्यवसायी
विजय माल्या ने ख़रीदा था। तलवार के साथ टीपू की और 30 से ज़्यादा सामानो की भी
नीलामी की गई थी जिसमें बहुत खूबसूरत नक्काशीदार तरकश (तीर रखने का सामान) पिस्टल
खूबसूरत तोपेंबंदूकें वगैरह शामिल थीं.
दूसरे धर्मों का आदर
वैसे तो टीपू सुल्तान धर्म से मुस्लिम था. मगर वो अन्य
धर्मों की भी पूरी तरह से इज्ज़त किया करता था वो किसी किस्म के भेद भावे में यकीन
नहीं करता था. कई इतिहासकारों का मानना है की,
टीपू सुल्तान हर साल अपने इलाके के कई मंदिरों एवं तीर्थ स्थानों को दान दिया करता
था, और अगर कभी किसी
किस्म का कोई धार्मिक विवाद हो जाए तो वो उन मामलों की खुद सुनवाई करता। मध्यस्तता
करके उनका निपटारा किया करता उसने आपने साम्राज्य में कई ऐसे लोगों की नियुक्ति की
थी जो अपने अपने इलाके के मंदिरों और दार्शनिक स्थलों की देखरेख और उनको सुरक्षित
रखते थे। ये उस इलाके के प्रतिष्ठित ब्रामहण हुआ करते थे उन्हे श्रीमतु देवास्थानादसिमे कहा जाता था.
अंग्रेजों की हिट लिस्ट
उस जमाने में अंग्रेजों ने एक लिस्ट तैयार की हुई थी जिसमें
वो अपने दुश्मनों के नाम दर्ज किया करते थे। जिसमें टीपू सुल्तान का भी नाम लिखा
हुआ था उन्होने, 18 वीं सदी में जब अंग्रेज़ अपने कंपनी का
विस्तार कर रहे थे तब उस वक़्त उनका सामना दक्षिण के इस शेर से हुआ जिसे शेरे मैसूर
कहा जाता था, उस वक़्त उसने बहुत दिनों तक अंग्रेजों को अपनी सीमाओं के अंदर आने से
रोके रखा था, बार बार अंग्रेजों को टीपू सुल्तान से हार का
सामना करना पड़ता था इस वजह से उन्होने टीपू सुल्तान का नाम अपने 10 दुश्मनों की
लिस्ट में रखा था।अपने 17 सालों के शासन काल में टीपू ने अग्रेज़ों को लोहे के चने
चबवा दिये थे.
व्यापारिक सूझ बुझ
टीपू सुल्तान ने कई बांधों और नहरों का निर्माण करवाया, जिससे उस इलाके में खेती का काम सुचारु रूप से किया जा सके और
वहाँ के किसानो की आय और जीवन शैली में सुधार हो सके। मैसूर शुरू से रेशम चावल और
चन्दन के उत्पादन का प्रमुख केंद्र रहा है, इन सब बातों को
ध्यान में रखते हुए टीप सुल्तान ने विदेशों से व्यापार करने के लिए 30 से ज़्यादा
व्यापारिक केन्द्रों का निर्माण किया.
टीपू सुल्तान ने एक बार कहा था की “ मेमने की तरह जीने से
अच्छा है शेर की तरह मर जाऊँ “