Biography of Faraz Ahmad (फ़राज़ अहमद की ज़िंदगी )


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फ़राज़ अहमद


फ़राज़ अहमद एक ऐसा नाम है शायरी और ग़ज़ल की दुनियाँ में जो ख़ुद अपने आप में एक पूरी की पूरी नज़्म है. शायद ही कोई ऐसा शायरी का दीवाना हो जिसने इनका का नाम न सुना हो, नाम अगर ना भी सुना हो तो इनकी ग़ज़लें ज़रूर गुनगुनाई होंगी। हाँ ये हो सकता है की आपको ये पता ना हो की आप किस शायर की ग़ज़ल के शेर गुनगुना रहे हैं. अब के बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में, मिलें जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। क्या आपने कभी ये ग़ज़ल सुनी है अगर हाँ तो ये था तरीका दर्द कहने का फ़राज़ का. तो आइए जाने क्या थी फ़राज़ की ज़िंदगी.


फ़राज़ की शुरुवाती ज़िंदगी



12 जनवरी 1931 का दिन था, और उस वक़्त मुल्क़ का एक नाम था हिंदुस्तान जो बदक़िसमती से आज दो मुल्कों में बंट गया, एक हिंदुस्तान और एक का नाम है पाकिस्तान. तो आज के पाकिस्तान में नौशेरा शहर के कोहाट में एक ग़ैर मामूली बच्चे की पैदाइश सैयद मुहम्मद शाह बार्क के घर. उनका नाम रखा गया अहमद शाह कोहाटी, पढ़ने लिखने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी उनकी मगर उनके वालिद चाहते थे की, उनका बेटा यानि अहमद शाह साइंस की पढ़ाई पढे और आगे चल कर किसी कॉलेज में साइंस पढ़ाएँ और अपनी ज़िंदगी गुज़ारे, मगर फिर अहमद शाह कभी फ़राज़ अहमद नहीं हो पाते, उनका मन शुरू से शायरी में लगता था। वो अपने खाली वक़्त में ग़ज़लें लिखा करते और इस शौक के चलते उन्होने पेशावर के मशहूर एडवर्ड कॉलेज से उर्दू और फारसी में M.A. की डिग्री हासिल की हालांकि उनकी ख़ानदानी ज़ुबान कभी उर्दू या फारसी नहीं रही, वो पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बोली जाने वाली पश्तो भाषा बोलने वाले ख़ानदान से थे. फ़राज़ ने अपनी 9 क्लास से ही शायरी करनी शुरू कर दी थी, उनके वालिद के एक दोस्त हुआ करते थे उस ज़माने में उनकी लड़की से उन्हे इश्क़ हो गया था। वो उस वक़्त 10 वी क्लास में पढ़ा करती थी वो एक दूसरे को शेर सुनाया करते थे, जिसमे वो अक्सर जीत जाया करती थी फ़राज़  जितनी भी गजलें याद करते और दूसरे दिन उनका मुकाबला उस लड़की से होता मगर वो लड़की उनसे फिर जीत जाती. तब फराज़ ने सोचा की अब अपनी ही ग़ज़ल लिखी जाए और उन्होने अपनी ग़ज़लने लिखनी शुरू कर दीं, उनके वालिद ख़ुद भी फारसी और उर्दू के बड़े शायरों में से थे उनके घर शायरों का आना जाना लगा रहता था। वो उनकी महफ़िलों में बैठा करते और उनकी शायरी सुना करते एक बार ऐसी ही किसी शाम फ़राज़  ने डरते डरते अपनी वालिदा को अपना लिखा एक शेर दिया और कहा की वो उनके वालिद को दे पढ़ने को दी उन्होने फ़राज़ को खूब डांटा कहा अभी पढ़ाई पर ध्यान दो, खैर फ़राज़  को नज़्म बहुत पसंद थी मगर उन्होने सारे किस्म की शायरी की और ये एक दिलचस्प बात है की, उन्हे उर्दू बोलने आती नहीं थी वो लिख तो लेते थे मगर बहुत दिनों तक उन्हे उर्दू बोलने नहीं आई.

रेडियो और फ़राज़ 



सन 1950 के दौर में एक मुशायरे के दरमायान पाकिस्तान ब्रोडकास्ट के जनरल सेक्रेटरी बुखारी आए हुए थे, और फ़राज़ अपनी ग़ज़लें सुना रहे थे उन्होने उन्हे एक और ग़ज़ल सुनाने को कहा फ़राज़ ने सुना दी, उन्होने सून कर कहा बेटा फ़राज़ जब मन हो रेडियो में काम करने का तो कराची आ जाना, कुछ दिनों बाद वो वहाँ चले गए उनका काम था रेडियो प्रोग्राम के लिए स्क्रिप्ट लिखना। मगर उनका मन वहाँ कराची में लगता नहीं था वो पहली बार इतने दिनों तक पेशावर से दूर रहे थे, एक बार बहुत बीमार पड़ गए फिर एक दिन वो अपने डाइरेक्टर कुतुब साहब जिनका नाम था के पास गए, और कहा की आप मेरा इस्तीफा ले लीजिये या मेरा ट्रान्सफर कर दीजिये अब मैं यहाँ काम नहीं कर सकता। तो उन्होने ने कहा ठीक है मैं बात करता हूँ और उन्होने उनका ट्रान्सफर पेशावर कर दिया. फिर वो रेडियो में ही रहे मगर पेशावर से काम किया. बाद में वो फिर पेशावर यूनिवर्सिटी में उर्दू के प्रोफेसर के तौर पर काम करने लगे. फराज़ को शायरी के अलावा बेड्मिटन, टेनिस और हॉकि खेलने का भी शौक था और वो रोजाना मोर्निग वॉक पर जाया करते थे.


ज़िया उल हक़ का ज़माना और फ़राज़ 



बहुत आम ज़बान में शायरी किया करते थे जो आसानी से सबको समझ में आ जाया करती,फ़राज़ शुरुवाती जमाने में इक़बाल की शायरी से बहुत मुतासीर थे। उसके बाद तरक्कीपसंद शायरी की ओर उनका झुकाओ बढ़ गया इस वजह से उन्हे अली सरदार ज़ाफरी और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पसंद आने लगीं. और उन्होने उनके तर्ज़ पर शायरी करने लगे. उस वक़्त पाकिस्तान में ज़िया उल हक़ का ज़माना था, जिनके काम करने के अंदाज़ से तरक्कीपसंद शायरों ने उनके खिलाफ बहुत लिखा और फ़राज़ भी उनमें से एक शायर थे उसकी वजह से फ़राज़ को जेल भी जाना पड़ा और बाद में उन्हे देश निकाला दे दिया गया 6 साल तक वो अपने मुल्क़ पाकिस्तान से बाहर रहे उस दरमयान वो ब्रिटेन, कनाडा और यूरोप में रहे.


फ़राज़ और और उनकी शोहरत



जब भी बात होती है उर्दू शायरी की तो सबसे पहले आम तौर पर ग़ालिब ,इकबाल का नाम आता है, मगर इनके बाद अगर किसी ने अपनी शायरी से नाम कमाया है तो वो नाम है फ़राज़ अहमद का उनके लिखने का अंदाज़ ही कुछ निराला था, वो जज़्बातों को अपने हर्फों में कुछ इस तरह ढाल लेते थे। की जो पढे उसको ऐसा महसूस होता जैसे उन्होने वो शेर उसके लिए ही लिखा था, जो उसको पढ़ रहा है. मूहोब्बत इश्क़ मिलना बिछड़ना दर्द ये सब उनकी ग़ज़लों नज़मों में ऐसे आते के एहसास को सहला देते पढ़ने वाले के। आज भी उनकी शायरी में वो दर्द ताज़ा है वही ताजगी लिए एक एक शेर ज़िंदा है उनका. जो शौहरत फ़राज़ को हासिल है हिंदुस्तान और पाकिस्तान में वो शायद किसी और शायर को नसीब नहीं हुई।


फ़राज़ का दुनियाँ से जाना



25 अगस्त 2008 के दिन ये शायरी का दूसरा नाम फ़राज़ अपनी क़लम को छोड़ कर दुनियाँ से चला गया. इस्लामाबाद के एक हॉस्पिटल में किडनी की बीमारी की वजह से उन्होने आखरी सांस ली। हम सब उनकी शायरी के मुरीद और ख़ुद उर्दू शायरी उनको अपनी अपनी ज़िंदगी के आख़री दिन तक याद करते रहेंगे.



फराज़ अहमद के ग़ज़लों की किताबें जो आप खरीद सकते हैं 



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