Biography of Shakeel Badayuni


शकील की शुरुवाती ज़िंदगी


Shakeel badayuni ki shayari


शकील बदायूंनी का नाम लेते ही कई सारे ऐसे गाने ज़हन में आ जाते हैं, जिनको आप चाहे न चाहें एक बार ज़रूर गुनगुना लेते है। शायर पैदा होते हैं अपनी ज़िंदगी के साथ मगर शायर की मौत नहीं होती, वो ज़िंदा रहते हैं अपनी शायरी के ज़रिये अपनी सोच के ज़रिये. कुछ ऐसे ही 3 अगस्त 1916 के दिन उत्तरप्रदेश के बदांयू में एक मामूली से बच्चे का जन्म हुआ, उसका नाम रखा गया गफ़्फ़ार अहमद उनके वालिद का नाम मूहोम्मद जमाल अहमद सोख्ता क़ादरी था. बदायूँ में पढ़ाई लिखाई का कोई ख़ास इतेज़ाम न होने की वजह से उनको उनके दूर के एक रिश्तेदार ज़िया उल क़ादरी के पास पढ़ने के लिए पहुंचा दिया गया. लखनऊ जहां से शकील ने अपनी स्कूल तक की पढ़ाई लखनऊ से ही की. उसी दरमयान शकील ने ज़िया उल क़ादरी से शायरी की शुरुवाती तालिम भी ली, ज़िया उल क़ादरी उस वक़्त के जाने माने शायर थे. उनका नाम शायरों की दुनियाँ में बड़े अदब से लिया जाता था। शकील को बचपन से ही शायरी का शौक था उनके वालिद चाहते थे की, शकील ख़ूब पढ़ें लिखे और ज़िंदगी में  एक क़ामयाब इंसान बने उसके लिए उन्होने शकील को हिन्दी अँग्रेजी उर्दू फारसी और अरबी भाषाओं की तालिम भी दिलवाई. शकील भी यही चाहते थे मगर ज़िया उल क़ादरी की सोहबत ने उन्हे शायरी के शौक को और हवा दी, इस तरह उनका झुकाओ शायरी की तरफ़ और भी गहरा होने लगा,


शकील और अलीगढ़


shakeel badayuni ki shayari


सन 1936 में जब वो अलीगढ़ गए अपनी बी.ए. की पढ़ाई के लिए वहाँ वो अक्सर अपने दोस्तों को अपनी लिखी शायरी सुनाया करते, उनकी शायरी उनके दोस्तों को बहुत पसंद आती ये सिलसिला चलता रहा. फिर धीरे धीरे वो कॉलेज में होंने वाले मुशायरों में हिस्सा लेने लगे.अब वो काफ़ी मशहूर हो गए थे अपनी शायरी के चलते, ये सब शौकिया तौर पर वो किया करते खैर ये सब होता रहा और सन 1940 उनकी बी.ए. की पढ़ाई पूरी हुई। उसी दरमायान उनकी शादी सलमा से करवा दी घर वालों ने ये सोचा की अब पढ़ाई पूरी हो गई है, कहीं न कहीं एक अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी, और ये हुआ भी उन्हे दिल्ली में एक जगह नौकरी मिल भी गई मगर उनका ज़्यादा मन शायरी में ही लगा रहता. उन्हे देश के कोने कोने से मुशायरों में बुलाया जाने लगा था, वो ज़माना था जब देश ग़ुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था और बहुत सारे आंदोलन हो रहे थे अंग्रेजों के खिलाफ़ उस जमाने में जो शायरी हुआ करती थी, वो देश प्रेम के आसपास की हुआ करती थी मगर शकील के शायरी में हमेशा इश्क़ मूहोब्बत महबूब की बातें होतीं थीं। एक खास रूमानी एहसास के लिया मशहूर थीं शकील की शायरी.


शकील और नौशाद की दोस्ती


Shakeel badayuni ki shayari


किसी मुशायरे के सिलसिले में वो सन 1944 में मुंबई गए हुए थे, जहां उनकी मुलाक़ात मशहूर संगीतकार नौशाद और फिल्म प्रोड्यूसर ए. आर. क़ादर से हुई। वो उनदिनों एक फिल्म पर काम कर रहे थे जिसके लिए उन्हे एक नए गीतकार की तलाश थी, और इतेफाक से उनकी मुलाक़ात शकील से हो गयी उन्होने शकील से कहा वो अपने हुनर का इस्तेमाल करके एक गीत लिखे। शकील ने तुरंत एक लाइन लिख दी और वो कुछ इस तरह की थी “हम दिल का अफसाना दुनियाँ को सुना देंगे, हर दिल में मूहोब्बत की आग लगा देंगे. ये लाइन सुनते ही नौशाद और क़ादर को वो मिल गया था, जिनकी उन्हे तलाश थी. उन्होने तुरंत उन्हे अपनी फिल्म दर्द में गाने लिखने के लिए रख लिया। इस फिल्म के सारे गाने शकील ने लिखे और सब के सब बहुत मशहूर हुए, इस फिल्म का एक गाना जो खास तौर पर मशहूर हुआ जो आज भी उतना ही पसंद किया जाता है, जब वो पहली बार सुना गया था वो गाना है “अफ़साना लिख रही हूँ दिले बेक़रार का आंखों में रंग भर के तेरे इंतजार का” इस फिल्म के बाद नौशाद और शकील की दोस्ती हो गई वो जिस फिल्म में संगीत देते उसमें गाने शकील लिखते। फिल्म बैजु बावरा, मदर इंडिया, दीदार और मुग़ल-ए- आज़म गंगा जमुना, मेरे महबूब, चौदहवीं का चांद, साहब बीवी और गुलामके एक से बढ़ कर एक गानों में नौशाद ने संगीत दिया, और उन्हे लिखा शकील ने और आवाज़ दिया करते थे मुहोम्मद रफ़ी वो दौर कुछ ऐसा गुज़रा की उसकी खुशबू आज भी महसूस की जा सकती है. शकील ने महज 20 सालों तक फिल्मों में गाने लिखे और जब तक लिखे तब तक उनके सामने कोई नहीं था. उसपर संगीत नौशाद का और आवाज़ का जादू मूहोम्मद रफ़ी की शकील ने इन 20 सालों में करीब 89 फिल्मों में गाने लिखे.


शकील और उनकी उपलब्धि



शायद उनकी क़लम में स्याही की जगह एहसास भरे हुए होते थे, वो एहसास ही थे जो आज तक सुनने वाले पर एक जादू सा कर देते हैं. उन्होने ने जो भी गाने लिखे जिस फिल्म के लिए लिखा वो बहुत पसंद किया गया। इस जादूगरी के लिए उन्हे लगातार 3 बार फ़िल्म फ़ेयर भी दिया गया. 1960 में रिलिज हुई फ़िल्म “चौदवी का चाँद” के चौदवी का चांद हो या आफताब हो के लिए पहली बार फिर सन 1961 में रिलीज़ हुई फ़िल्म “घराना” के हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं के लिए दूसरी बार और 1962 में रिलीज़ हुई फ़िल्म “बीस साल बाद” के कहीं दीप जले कहीं दिल” के लिए तीसरी बार. उनकी उपलब्धियों में एक ये उपलब्धि भी है की भारत सरकार ने उन्हे “गीतकार-ए-आज़म” के ख़िताब से भी नवाज़ा.


शकील और बदायूँ



बदायूँ एक कस्बा हुआ करता था, शायद ही बदायूँ इतना मशहूर हुआ होता अगर वहाँ शकील पैदा नही हुए होते, आज इतने ज़माने बीत जाने क बाद भी उनके लिखे गाने और ग़ज़लें ज़रा सा कोई गुनगुना दे तो यकीनन सुनने वाला उसको पूरा का पूरा हर्फ़ ब हर्फ़ गा लेता है। ये था जादू उस क़लम के जादूगर का और एक और ख़ास जगह जो भारत के उत्तरप्रदेश में है बदायूँ , शकील ने अपने तखल्लुस के लिए पहले सबा और फ़रोग जैसे लब्जों का इस्तेमाल भी किया. मगर बाद में उन्होने शकील बदायूनि नाम से ही अपनी ग़ज़लें और गीत लिखे महज 13 साल की उम्र में उनकी पहली ग़ज़ल सन 1930 में शाने हिन्द अख़बार में छपी, जो उस इलाके का बहुत मशहोर अख़बार हुआ करता था. 


शकील की जादूगरी



शकील ने ना सिर्फ फिल्मों के लिए गाने लिखे बल्कि उनकी वो ग़ज़लें भी बहुत मशहूर हुईं जो उन्होने फिल्मों में इस्तेमाल नहीं की, उनकी ऐसी ग़ज़लें बहुत से ग़ज़ल गायकों ने गाईं हैं जैसे बेग़म अख्तर उन्होने उनकी बहुत सी गैर फिल्मी ग़ज़लों को अपनी रूमानी आवाज़ दी. शकील ने ना सिर्फ गीत ग़ज़लें नात क़व्वालियाँ लिखीं बल्कि ऐसे ऐसे भजन लिखे जो आज भी बहुत मशहूर हैं जैसे “मन तड़पत हरी दर्शन को आज”, “ओ दुनियाँ के रखवाले सून दर्द भरे मेरे नाले” और ऐसे कई.

 
शकील का जाना


सन 1964-65 के दिनों में शकील को एक लाइलाज बीमारी ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया। उस बीमारी को टी.बी. रोग कहा जाता है, उस इसका कोई ख़ास इलाज नहीं हुआ करता था शकील की एक ग़ज़ल है-

सून तो सही जहां में है तेरा फसाना क्या
कहती है तुझसे ख़लक़-ए-ख़ुदा गायबाना क्या
आती है किस तरह से मेरी कब्ज़े रूह को
देखूँ तो मौत ढूंढ रही है बहाना क्या

20 अप्रैल 1970 के दिन आखिरकार मौत ने बहाना ढूंढ ही लिया, और क़लम के इस माहिर जादूगर को बहाने से दुनियाँ से चुराकर ले गई. मगर मौत उनके ख्याल को उनके गीतों को उनकी ग़ज़लों को हुमसे चुरा न सकी वो आज भी हैं, और तब तक ज़िंदा रहेगी जब तक शायरी ग़ज़ल गीतों के चाहने वाले रहेंगे.

 
शकील के लिखे कुछ मशहूर गाने और ग़ज़लें.


  •       चौदवीं का चाँद हो या आफताब हो
  •       जब प्यार किया तो डरना क्या
  •       अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
  •          जब चली ठंडी हवा जब उडी काली घटा
  •       इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के
  •       आज की रात मेरे दिल की सलामी लेले
  •       लो आ गयी उनकी याद वो नहीं आए
  •       रहा गर्दिशों में हरदम मेरे इश्क़ का सितारा



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