मोहोर्रम क्या है, और ये क्यों मनाया जाता है ?
मोहोर्रम क्या है ? इसको लेकर बहुत से लोगों में भ्रम होता है, कुछ समझते हैं की, ये मुस्लिमों का कोई त्योहार है।
तो कुछ कुछ समझते हैं, मगर असल में मूहोर्रम एक महिना है। Islamic
Calander के हिसाब से मूहोर्रम पहला महिना होता है, इसका
मतलब मूहोर्रम के महीने से ही Islamic Calender की शुरुवात होती है। मगर आम
तौर पर जैसे लोग नए का जश्न मानते हैं, मुस्लिम समुदाए के लोग
अपने नए साल का जश्न नहीं मानते क्योंकि, मूहोर्रम के महीने
में ही करबला का युद्ध हुआ था। जिसमें हज़रत इमाम हुसैन के खानदान वाले और
उनके दोस्तों को शहीद कर दिया गया था। एक क्रूर बादशाह के द्वारा जिसका नाम यज़िद था।
ताजिया क्या होता है
मोहोर्रम के महीने में जो करबला (इराक) शहर में युद्ध
हुआ था, जिसमें इमाम हुसैन साहब और उनके 72 साथियों को शहीद कर
दिया गया था, जिसका सोग मुस्लिम समुदाय के लोग मानते
हैं प्रतिकात्मक रूप से ये लोग हज़रत इमाम हुसैन का जनाज़ा ताजिये के शक्ल में
निकलते हैं। और उसके साथ चलते हुए शिया समुदाय के लोग मातम करते हैं, ये ताजिये इमामबाड़े से निकल कर करबला तक ले जाया जाता है, इमामबड़ा और करबला अक्सर हर शहर में होते हैं, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग रहा करते हैं। मोहोर्रम की 9 और 10 तारीख को दुनियाँ
भर के मुस्लिम रोज़े रखते हैं इबादत करते हैं, और बात अगर की जाए
ताजिये की तो ये इस्लाम की कोई परंपरा नहीं है, बल्कि
कई मुस्लिम बुद्धिजीवी इसको इस्लाम के खिलाफ मानते हैं। ताजिये सिर्फ भारत में निकले
जाते हैं ये एक सम्पूर्ण भारतीय परंपरा है।
ताजिये का इतिहास
इतिहास में एक बादशाह हुआ उसका नाम था तैमूर लंग वो एक
बहुत ही महत्वाकांशी बादशाह था। वो चाहता था की, सारी दुनियाँ पर
उसका राज हो तैमूर बरला वंश का तुर्की बादशाह था। वो मुस्लिमों के एक समुदाय
जिसे शिया कहते हैं से आता था। मात्र 13 साल की उम्र में वो चुगताई तुर्कों का सरदार
बन गया था। तैमूर सन 1398 में भारत
आया वो अफगानिस्तान फारस मेसोपोटामिया आदि देशों से होता हुआ भारत आया था तैमूर लंग एक तुर्की शब्द है जिसका
अर्थ होता है तैमूर लंगड़ा वह
दाएं हाथ और दाए पांव से पंगु था।
चूंकि तैमूर
शिया मुस्लिम था, तो वो हर साल मूहोर्रम के महीने में (करबला
) इराक़ जाया करता था इबादत के लिए। मगर एक बार ऐसा हुआ की, वो
बहुत बीमार हो गया और वो सफर करने के लायक नहीं बचा। हकीमों ने सख़्त हिदायत दे दी की
आप अब सफर नहीं कर सकते, तैमूर इस बात से बहुत बेचैन रहने लगा
क्योंकि मूहोर्रम का महिना आने वाला था, और वो हर साल इस महीने
में करबला (इराक) जाया करता था।
उसके कुछ
चुनिन्दा दरबारी थे, जिन्हे अपने बादशाह की ये हालत देखकर बहुत बुरा
लग रहा था। वो चाहते थे की, तैमूर किसी तरह खुश हो जाए। जिसके
लिए उन्होने एक तरकीब सोची, उन्होने कुछ कारीगरों को बुलाया और
उनसे इराक
के कर्बला में बने इमाम हुसैन के रोजे (कब्र) की प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया।
कारीगरों
ने बांस कमचियों से हज़रत इमाम
हुसैन के रोजे (कब्र) जैसा एक ढांचा
बनाया, जिसको उन्होने
फूलों और रंगीन कपड़ों से सजाया। इस ढांचे को नाम दिया गया ताजिये का जिसको पहली
बार तैमूर के महल में 801 हीजरी में रखा गया।

तैमूर के इस ताजिये को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु
आने लगे तैमूर क्योंकि बादशाह था, इसलिए उसको सब खुश करना चाहते थे। जिसके लिए
सभी रियासतों में ताजिये का निर्माण होने लगा भारत में जीतने शिया नवाब थे, सबने ये परंपरा शुरू कर दी। तब से लेकर आज तक भारत,
पाकिस्तान और बांग्लादेश में ताजिये की परंपरा शुरू हो गई।और हर साल ताजिये निकले जाते
हैं और मातम किया जाता है मोहोर्रम के महीने में।
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